रेखाःसप्तशमालिखेदुपरिगाास्तिर्यक्तथैवक्रमा
दीशादग्रिभमादितोऽपिगणेयदादित्यभस्यावधि।
वेधाजन्मदिनेगृतिर्भयमथाधानाख्यनक्षत्रके
कर्मण्यर्थविनाशनंखलुरविर्दघात्सपापोमृतिम्।।
7 रेखाएँ खड़ी व 7 पड़ी खीचें। अब ईशान कोण से शुरू करते हुए अभिजित् सहित 28 नक्षत्र लिख लें। नक्षत्र कृत्तिका से शुरू करें। यदि सूर्य के नक्षत्र का वेध जन्म नक्षत्र (दिन) से हो तो प्राणों का संशय उपस्थित होता है।
•आधान नक्षत्र (19वाँ) विद्ध हो तो भय की स्थितियाँ बनती हैं।
•यदि कर्म नक्षत्र (10वाँ) विद्ध हो तो धन हानि होती है।
•यदि वेध कारक सूर्य पापयुक्त भी हो तो विशेष अनिष्ट होता है।
एवं विद्धे स्वचरैः क्रूरैरन्यैर्मरणम् ।
सौम्यैर्विद्धे न मृतिविद्यादेवं सकलम् ।।
आधानकर्मक्षविपन्निजः वैनाशिके प्रत्यरभे बधाख्ये ।
पापग्रहो मृत्युभयं विदध्याद्धेधे तथा कार्यहरः शुभाख्ये ।।
आदित्यसङ्क्रान्तिदिने ग्रहाणां प्रवेशने वा ग्रहणे च युद्धे ।
उल्कानिपाते च तथाद्भुते च जन्मत्रयं स्यान्मरणदिदुःखम् ।।
जन्म, आधान व कर्म नक्षत्र का एक साथ क्रूर ग्रहों से वेध हो तो मृत्यु होती है।साथ में यदि शुभ ग्रहों से वेध हो तो मृत्यु न होकर कष्ट होता है।
सामने, दाएँ व बाएँ एक ही रेखा पर वेध होता है। जैसे कोई ग्रह कृत्तिका में है तो सामने वाले श्रवण नक्षत्र से, बायीं ओर के विशाखा से दायीं ओर के कृत्तिका से उसका वेध समझा जाएगा।
•माना आज सूर्य भरणी नक्षत्र में है। किसी का जन्म नक्षत्र आर्द्रा है तो आर्द्रा जन्म नक्षत्र, स्वाति कर्म नक्षत्र व धनिष्ठा आधान नक्षत्र है। इन तीनों में से किसी पर भी सूर्य का वेध नहीं है।
•मंगल आज पू. फा. नक्षत्र में है। शनि रेवती में है। राहुकेतु क्रमशः उ.फा. व पूर्वाभाद्रपद में हैं।
•पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का वेध पुष्य, अभिजित, अश्विनी से है। इनमें व्यक्ति के तीनों नक्षत्र नहीं हैं
रेवती का उ.फा., मृगशिरा व मूल से वेध है, जो इस उदाहरण में लागू नहीं है।
•उत्तरा फाल्गुनी का रेवती, अभिजित् व पुनर्वसु से वेध है। पूर्वा भाद्रपद का उत्तराषाद, पुनर्वसु व चित्रा से वेध है।
•अतः किसी भी पापग्रह का वेध न होने से आज या इन नक्षत्रों में इन ग्रहों के रहने तक व्यक्ति को अशुभ गोचर हो, जैसा कि पीछे राशि विचार में कहा है, तो भी विशेष अशुभ फल नहीं होगा। शुभ राशि गोचर हो तो शुभ ही होगा।
1.The nakshatra occupied by the Moon is called the Janam Nakshatra.
2.The 10th Nakshatra from it is called the Karma nakshatra or Anujanma or Dwijanma.
3.The 19th Nakshatra from it is called Adhana Nakshatra or Trijanma.
4.The 3rd Nakshatra from the Janam Tara is called Vipat Tara.
5.The 5th Nakshatra from the Janam Tara is called Pratyari Tara.
6.The 7th Nakshatra from the Janam Tara is called Vadha Tara.
7.The 22nd Nakshatra from the Janam Tara is called Vainashika Tara.
These 7 Nakshatras have to be marked in the Sapat Shalaka Chakra e.g. a person has his natal Moon in Mrigshira. Then the 3rd, 5th, 7th, 10h, 19th and 22nd Nakshatras are Punarvasu, Ashlesha, P. Phalguni. Chitra, Dhanishta and Uttra Bhadrapada respectively.
When the sun causes Vedha to the Janam Tara, there is danger to life. When the sun cause Vedha to the Karma Tara, there is fear and anxiety. When the Vedha is to the Adhana Tara, there is loss of wealth. Thus the sun’s Vedha to any one of these 3 stars gives malefic results. If the Vedha is by the sun along with other maleic planets the results are very inauspicious. If the Vedha is by malefic planets to all these 3 Taras, then there is severe trouble and may be death also. If the Vedha is by benefics and malefics both, then death does not occur.
Vedha to all 7 Nakshatras simultaneously gives danger to life, specially if the Vedha is only by malefic. If benefices are also involved then the results change to misfortune, losses in business and other losses.
When the transiting moon is on the Janam Nakshatras, the Dwijanma or Trijanma and on that day
1.The sun changes a sign i.e. it is Sankranti, or
2.Any other planet changes a sign, or
3.An eclipse occurs, or
4.A planetary war takes place, or
5.There is fall of meteors and comets, or
6.There is any other celestial happening, then unfortunate events or even death can take place.
Great line up. We will be linking to this great article on our site. Keep up the good writing.