
विभिन्न भावों में सूर्य
प्रथम : अ) लग्न में बैठा सूर्य एक जातक को स्वभाव से अशान्त बनाता है, नेतृत्वता के गुण देता है, कदाचित जातक अहंकारी और घमण्ड़ी हो सकता है, जातक को आत्मकेन्द्रित बनाता है, गंजापन (यदि 5, 9, 11 राशि में है), अधिक कन्या सन्तान (यदि मीन राशि में है), हृदय रोग (यदि कुंभ राशि में है). बालों का सफेद होना (यदि लग्न में पीड़ित है), आंखों की समस्यायें (यदि 1, या 4 राशि में है), नता (यदि तुला राशि में 7° से 13° में है);
आ) सूर्य राहु की युति उच्च रक्तचाप और आंखों का दोष देती.
इ) सूर्य चन्द्रमा की युति जातक को चंचल बुद्धि बनाती है।
द्वितीयः जातक द्रव्यात्मक स्रोत्रों के प्रबन्ध में सक्षम होता है, बुद्धि का वैज्ञानिक झुकाव, स्वअर्जित धन-सम्पति, मुकदमों की उलझनें, चिड़चिड़ाहट, बड़ों का उल्लघंन, अस्वस्थता और उसके उपर होने वाला खर्चा।
तृतीयः व्यथित होने के उपरान्त सफलता, बौद्धिक घमण्ड, अपने | सगे-सम्बन्धियों से मित्रतापूर्ण न होना, धनवान, साहसी।
चतुर्थः अ) हृदयहीन, स्वार्थी, छली या कपटी, रक्तचाप का रोगी;
आ) कुंभ राशि का चौथे या दसवें भाव में बैठा सूर्य पिता को हृदय के रोग देता है;
इ) पेट की समस्यायें; ई) स्त्रियों की कुण्डली में यह विवाह को हानि पहुंचाता है
उ) जातक उत्तराधिकार में धन-सम्पति पाता है।
पंचमः अपने बड़ों के प्रति चिन्ता, बौद्धिक, युक्तिपूर्ण।
षष्टमः अच्छी प्रशासनिक क्षमता, साहसी, अपने सगे-सम्बन्धियों से अच्छे सम्बन्ध बनाकर नहीं रखता है, कठोर परिश्रम के द्वारा अपनी पहचान बनाता है।
सप्तमः अपने साझेदार को दण्ड देने का प्रयास करता है, बुरे स्वभाव वाली भार्या, महत्वकांक्षी जीवनसाथी, असन्तोषजनक वैवाहिक जीवन।
अष्टमः पतला-दुबला शरीर, रोगी जैसा, आंखों की दृष्टि की खराबी, घटनाशून्य जीवन, गूढ़ विद्या का शौक, तीव्र लैंगिक और भावनात्मक बन्धन, आयु में कमी, स्त्रियों की कुण्डली में विधवापन।
नवमः अपने बड़ों के प्रति चिन्ता, बुद्धि का धार्मिक झुकाव ।
दशमः (दिशाबल प्राप्त करता है)
अ) सर्वाधिक मेहनत न्यूनतम लाभ;
आ) कठिन कार्य या प्रयास के उपरान्त सफलता;
इ) सीखने के लिए एक बौद्धिक इच्छा;
उ) शासन का प्रिय, धनाढ्य और प्रसन्नतायुक्त, आज्ञाकारी पुत्र, जीवन में नाम, यश-कीर्ति, शक्तिशाली माता-पिता;
ऊ) यदि राहु के द्वारा ग्रहण युक्त हो तो राजनीतिक जीवन परदुष्प्रभाव पड़ता है, जातक को अतिवादी बनाता है, कार्य क्षेत्र में ___ विरोधता और कार्य का आकस्मिक अन्त, बैचेन बुद्धि, घटनाशून्य कार्यशैलीव जीवन।।
एकादशः अ) दीर्घायु, धन-सम्पति, उच्च पद को संभालेगा, प्रभावशाली मित्र;
आ) सर्वाधिक आय न्यूनतम मेहनत;
इ) ग्यारहवें भाव का सूर्य कई दोषों को दूर करता है।
द्वादशः अ) पिता से दूरी, आंखों की दृष्टि प्रभावित, धन-सम्पति के लिए अच्छा नहीं
आ) अन्य के अधीन कार्य करने की क्षमता, शक्तिशाली गुप्त शत्रु;
इ) मीन राशि का सूर्य दाई आंख में परेशानी देता है;
ई) यदि सूर्य शनि या राहु से पीड़ित नहीं है और न ही राहु के नक्षत्र में है तो यह तुला लग्न वाले जातकों को दीर्घायु देता है, एकान्तवास करने का स्वभाव, पारिवारिक सहायता की कमी, शासन के साथ समस्यायें। उपचय भावों (तीसरे, छठे, दसवें और ग्यारहवें) का सूर्य जातक को चरित्रवान और अन्य से श्रेष्ठ बनाता है।
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